राजस्थानी रा नामी कवि श्री ओम पुरोहित 'कागद' री एक पंचलड़ी निज़र है आपरी
तकलीफ़ां चावै सवाई कर ।
पण दरद री भी तो दुवाई कर ॥
नीं सरी रोटी-गाभा-मकान ।
पण बातां तो नीं हवाई कर ॥
थूं बपरा सातूं सुख भलांई ।
म्हरी छाती भी निवाई कर ॥
थारलो देश थूं क्यूं लूंटै ।
थोडी़ भोत तो समाई कर ॥
उठज्या ओ छेकड़ला माणस ।
अब तो कीं दांत पिसाई कर ॥