मंगलवार, 22 मार्च 2011


राजस्थानी रा नामी कवि श्री ओम पुरोहित 'कागद' री एक पंचलड़ी निज़र है आपरी  


तकलीफ़ां    चावै  सवाई कर ।
पण दरद री भी तो दुवाई कर ॥ 

नीं सरी  रोटी-गाभा-मकान ।
पण बातां तो नीं हवाई कर ॥

थूं बपरा   सातूं सुख भलांई ।
म्हरी छाती भी निवाई कर ॥

थारलो देश      थूं क्यूं लूंटै ।
थोडी़ भोत तो समाई कर ॥

उठज्या ओ छेकड़ला माणस ।
अब तो कीं दांत पिसाई कर ॥

रविवार, 13 मार्च 2011

पंचलड़ी: पंचलड़ी

पंचलड़ी: पंचलड़ी

पंचलड़ी


धूडां सूं चिणगार उठैला
ताप तावडै थार उठैला

खेतां खेडां सगळी ठौड़
लूवां लपटां डार उठैला

धोरां री धरती कद जानै
उच्छब इण दरबार उठैला

रातो तातो अगन पुहुप
रोहीडै सिणगार उठैला

जीवण बेलां हरियळ पाना
ऊन्यालै परबार उठैला