राजस्थानी रा नामी कवि श्री ओम पुरोहित 'कागद' री एक पंचलड़ी निज़र है आपरी
तकलीफ़ां चावै सवाई कर ।
पण दरद री भी तो दुवाई कर ॥
नीं सरी रोटी-गाभा-मकान ।
पण बातां तो नीं हवाई कर ॥
थूं बपरा सातूं सुख भलांई ।
म्हरी छाती भी निवाई कर ॥
थारलो देश थूं क्यूं लूंटै ।
थोडी़ भोत तो समाई कर ॥
उठज्या ओ छेकड़ला माणस ।
अब तो कीं दांत पिसाई कर ॥
जय हो !
जवाब देंहटाएंbadhiya hai.
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावासिक्त कविता...
जवाब देंहटाएंइसीलिए बोली की दिक्कत आड़े नहीं आई..
व्यस्तता के कारण देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ.
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् और आशा करता हु आप मुझे इसी तरह प्रोत्सन करते रहेगे
दिनेश पारीक
माटी की सौंधी सुगंध बिखेरती बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल| अब तो यहाँ बार बार आना पड़ेगा, अपनी घुमक्कड़ी में शामिल कर लेता हूँ इसे|
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